कॉन्शियस प्लैनेट (जागरूक धरती)
कॉन्शियस प्लैनेट (जागरूक धरती) मानव चेतना को विकसित करने और दूसरों को खुद में शामिल करने का एक प्रयास है, जिससे हमारे समाज की अलग-अलग गतिविधियों में जागरूकता आए। यह अभियान, इंसानी गतिविधि को प्रकृति और धरती के हर जीव के साथ तालमेल में लाने की एक कोशिश है। हम एक ऐसी धरती बनाना चाहते हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग सचेत रूप से कार्य करें, सरकारें सचेत रूप से चुनी जाएं, और जहां पर्यावरण के मुद्दे, पूरी दुनिया में चुनावी मुद्दे बन जाएं।
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मिट्टी बचाओ अभियान नीचे दिए गए कदम उठाकर, इस दिशा में काम करेगा:
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दुनिया का ध्यान मरती हुई मिट्टी की ओर मोड़ना।
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लगभग 350 करोड़ लोगों (दुनिया के 526 करोड़ मतदाताओं का 60%) को प्रेरित करना, ताकि वे मिट्टी के पोषण और उसे जीवंत बनाए रखने के लिए नीतियाँ बनाने में अपना समर्थन दें।
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193 देशों में मिट्टी की जैविक (ऑर्गेनिक) सामग्री को कम से कम 3-6% तक बढ़ाने, और इस मात्रा को बनाए रखने की दिशा में राष्ट्रीय नीतियों में बदलाव लाना।
मिट्टी में फिर से जान फूंकना - वैश्विक नीति सिफारिश और समाधान हैंडबुक
पढ़ेंसद्गुरु
योगी, दिव्यदर्शी और युगदृष्टा, सद्गुरु हमारे समय के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक हैं। सद्गुरु ज़बरदस्त क्षमता वाले एक आत्मज्ञानी गुरु हैं, और उन्होंने कुछ विशाल चुनौतियों को स्वीकार किया है। वे जीवन के कई अलग-अलग पहलूओं से जुड़े बड़े पैमाने के प्रोजेक्ट्स चला रहे हैं।
हालाँकि, उनकी सभी कोशिशें हमेशा एक ही लक्ष्य की ओर रही हैं, वो लक्ष्य है : मानव चेतना का विकास। पिछले चार दशकों में, सद्गुरु ने अपनी फाउंडेशन के माध्यम से दुनिया भर में लाखों लोगों को खुशहाली की तकनीकें भेंट की हैं। सद्गुरु की फाउंडेशन, दुनिया भर में 16 मिलियन से अधिक स्वयंसेवकों द्वारा चलाई जाती हैं। सद्गुरु को तीन राष्ट्रपति पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें राष्ट्र की विशिष्ट सेवा के लिए पद्म विभूषण और 2010 में भारत का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार, इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार शामिल हैं।
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मिट्टी बचाओ : एक अभियान जो 24 साल पहले शुरू हुआ था
सद्गुरु तीन दशकों से लगातार मिट्टी के महत्व और मिट्टी के विनाश होने के खतरे के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार कहा है: "मिट्टी हमारा जीवन है, हमारा शरीर मिट्टी ही है। और अगर हम मिट्टी पर ध्यान देना छोड़ देते हैं, तो इसका मतलब है हमने धरती पर भी ध्यान देना छोड़ दिया है।
मिट्टी को कौन बचाएगा?
1990 के दशक में, ग्रामीण तमिलनाडु में लोगों का एक समूह एक उदार पत्तेदार पेड़ की छाया में आंखें बंद किए बैठा था। कुछ समय पहले वे खुले में बैठे थे। वे दक्षिण भारतीय सूर्य के सभी तीव्र प्रभावों को महसूस कर रहे थे, और उनके शरीर से पसीना बह रहा था। पर फिर ठंडी हवा के झोंके में, और सुरक्षात्मक हरी छाँव में, उन्हें उस बड़े पेड़ के महत्व और आशीर्वाद का एहसास हुआ।
सद्गुरु ने उन्हें एक भीतरी प्रक्रिया करवाई, जिसमें उन्होंने वाकई पेड़ के साथ सांस के आदान-प्रदान (लेन-देन) का अनुभव किया। यानि वे देख पा रहे थे कि जो कार्बन डाइऑक्साइड वे बाहर छोड़ रहे हैं, उसे पेड़ अंदर ले रहा है, और पेड़ ऑक्सीजन छोड़ रहा है, जिसे वे अपने अंदर ले रहे हैं। यह एक अनुभवात्मक प्रक्रिया थी, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से देखा कि उनके सांसों के सिस्टम का आधा हिस्सा बाहर पेड़ों पर था। ये वे शुरुआती दिन थे, जब सद्गुरु ने ‘सबसे कठोर ज़मीन’ यानि ‘लोगों के मन’ में पौधे लगाना शुरू किया था। हर प्राणी या जीवन के हर रूप के साथ एकता के इस पहले अनुभव ने, उत्साही वॉलंटियर्स के पहले समूह को प्रेरित किया, और उन्होंने हमारी धरती को फिर से जीवंत बनाने के लिए इस अभियान की शुरुआत की।
यह अभियान 1990 के दशक में एक इको-ड्राइव वनश्री के रूप में कुछ हज़ार वॉलंटियर्स के साथ शुरू हुआ था। उस इको-ड्राइव का उद्देश्य था - वेल्लियांगिरी पहाड़ियों को फिर से हरा-भरा करना। यह अभियान जल्द ही प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स में बदल गया, जो 2000 के पहले दशक में तमिलनाडु में लाखों वॉलंटियर्स वाला एक बहुत बड़ा राज्यव्यापी अभियान बन गया था। 2017 में सद्गुरु ने नदियों के लिए एक ज़बरदस्त रैली, नदी अभियान (रैली फॉर रिवर्स) का नेतृत्व किया। इस अभियान को 16 करोड़ भारतीयों का समर्थन मिला और यह दुनिया का सबसे बड़ा पर्यावरण से जुड़ा अभियान बन गया। इसी अभियान को एक व्यावहारिक 'प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट' प्रोजेक्ट कावेरी कॉलिंग (कावेरी पुकारे) की मदद से, ज़मीनी स्तर पर आगे बढ़ाया। अब इसमें दुनिया के अरबों नागरिक शामिल होंगे। यह एक अभूतपूर्व अभियान होगा – जिसकी मदद से धरती को ज़्यादा जागरूक बनाया जाएगा, और मिट्टी को बचाने की नीतियाँ बनाई जाएंगी। सद्गुरु का मिशन है - 350 करोड़ लोगों तक पहुंचना। यह मिशन तीन दशकों के कार्य और विकास का परिणाम है।
इस अभियान के विकास से जुड़े पूर्ण पहलुओं में से एक है - उन लोगों की भारी संख्या, जो इस अभियान से प्रेरित हुए हैं। हालांकि इसके प्रभाव का बढ़ता हुआ स्तर भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा है। स्थानीय समुदायों के संगठनों, किसानों, स्कूलों, राज्य सरकारों को भारत में राष्ट्रीय नदी नीति को आकार देने में मदद करने से लेकर, अब पर्यावरण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ, और दुनिया के लीडर्स और सरकारों के साथ काम करने तक - यह अभियान पिछले तीन दशकों से ज़बरदस्त रूप से आगे बढ़ रहा है।
मिट्टी बचाओ अभियान का अभूतपूर्व प्रयास है - संपूर्ण लोकतांत्रिक दुनिया के नागरिकों की आवाज़ को बुलंद करना, और मिट्टी की सेहत और भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) को मज़बूत करने के लिए उन्हें एकजुट करना। जब पर्यावरण के मुद्दे चुनावी मुद्दे बन जाएंगे, जब लोगों के समर्थन की वजह से सरकारें मिट्टी की सुरक्षा के लिए लम्बे समय के नीतिगत बदलावों को अपनाएंगी, जब व्यावसायिक संगठन, व्यक्ति और सरकारें मिट्टी के स्वास्थ्य को सबसे ज़्यादा प्राथमिकता देंगे - तभी ये कोशिश सफल होगी।
ये ग्रीनहेड्स (दिमागी हरियाली) से ग्रीनहैंड्स (हाथों से फैली हरियाली) से ग्रीनहार्ट्स (दिलों में बसी हरियाली) तक का सफर रहा है। तो मिट्टी को कौन बचाएगा? हम सभी मिलकर बचाएंगे।
आइए इसे संभव बनाएं!
आइये इसे संभव बनाएं!